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बुधवार, 2 नवंबर 2011

tanu thadani तनु थदानी पापा का बचपन लाऊं मैं

कैसे करूँ यकीं ,कि पापा ,
सच ही कहा ये करते थें !
उनके बचपन में  दुनियाँ  में ,
लोग सुहाने रहते थें !

लोग सुहाने रहते थें ,
मेरे पापा  कहते थें -
दूजे का गम बिना स्वार्थ के ,
ख़ुशी-ख़ुशी जो सहते थें !

उन्हे यकीं था ,
फिर से दुनिया ,
 वैसी ही हो जाएगी ;
नहीं पता था ,
मेरे बचपन तक कड़वी  हो जायगी !

खून के रिश्ते होंगें ऐसे,
नाग-नेवले रहते जैसे!
खुशियों के शो रूम खुलेंगे ;
नहीं मिलेगीं जो बिन पैसे !!

मेरी  भरी जवानी मे जब ;
पापा मुझको छोड़  गए !
जाते-जाते मेरे अन्दर ;
इक आशा भी जोड़  गए!
कि मुझको मेरे बच्चो को ;
वो बचपन दिखलाना है ;
जिसमे रंजिश नहीं कहीं ;
खुशियों का ताना-बाना है !

कहां के लाऊ लोग सुहाने ?
खुशियों के वो ताने-बाने ;
हे ईश्वर;
कुछ एसा कर दो -
सबको ही तुम अच्छा कर दो !
नहीं सको पूरी दुनिया तो;
मुझको ही तुम सच्चा कर दो!!

मै जो अच्छा रहा तो दुनिया ;
अच्छी  नजर ही आएगी !
मुझमे सच होगा तो दुनिया ;
सच्ची नजर ही आयेगी !!

हे ईश्वर;
दो वर ऐसा कि 
कुछ ऐसा कर  जाऊं  मै;
ज्यादा नहीं तो कम से कम 
पापा का बचपन लाऊं मै !!  





















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