लोकप्रिय पोस्ट

बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

hey eshwar

दुखी हैं हम सब ,
खुद के कारण ,
खुद के कारण ,
आहत हैं!

करते सत्संग रामायण से ,
आदत से महाभारत हैं !!

पूरी बगिया दी तोर-फोर,
हर कार्य किये सृष्टी -नाशक ,
लकिन फिर भी हम जिन्दा हैं ,
प्यारे एश्वेर की चाहत हैं!!

हमने माना भोजन देता ,
ईश्वर ही सांझ -सवेरे हैं !
फिर भी सुबहो  से रात तलक ,
तेरे- मेरे के फेरे हैं!!

सारे के सारे संसाधन ,
पूरी ही तरह निचोर चुके,
हर इक रिश्तो से दुःख रिसते,
हम भावनाये तक छोड़ चुके!!

हम भूले हे ईश्वर तुमको,
तुम ना भूले ये राहत हैं!!






















कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें